7 Jul 2009

पिता

यूँ ही नेट पर सर्फिंग करते- करते पिता पर बहुत ही प्यारी और मन को छू लेने वाली कविताये पढने को मिली तो सोचा आप लोगों के साथ शेयर की जायें
(1)
लड़कियों के लिए पिता
उतने ही जरूरी होते हैं
गेहूँ की बालियों के लिए जितने कि
पानी, धूप और स्वाद
तभी वे सुनहरी हो लहलहाती हैं।
पिता न हों तो भी
उगती और बढ़ती तो हैं लड़कियाँ
क्योंकि दुनिया में कुछ भी रुक सकता है
बस लड़कियों की बाढ़ नहीं।
... मगर तब लड़कियाँ
सुनहरी बाली नहीं
जंगली घास होती हैं
पिता होता है उनके लिए
मात्र एक बीज
जिसे वे नहीं जानतीं
हवाओं ने कब बिखेरा था
बिन पिता की लड़कियाँ
जानती हैं उनका उगना
किसान की ऊष्ण मुट्ठियों की
आत्मीयता नहीं लिए है
तभी वे ढूँढती फिरती हैं
अपना खोया बचपन हर घड़ी
और हर पुरुष में
सबसे पहले
खोजती हैं पिता।
निर्मला भुराड़िया

(2)
आजकल अक्सर याद आती है
पिताजी की सूनी आँखें
जो लगी रहती थी देहरी पर
मेरे लौटने की राह में।

आजकल अक्सर याद आता है,
पिताजी का तमतमाया चेहरा,
जो बिफर-बिफर पड़ता था,
मेरे देर से घर लौटने पर।

अब भली लगती हैं,
पिताजी की सारी नसीहतें
जिन्हें सुन-सुन कभी,
उबल-उबल जाता था मैं।

आजकल सहेजने को जी करता है
चश्मा, छड़ी, धोती उनकी,
जो कभी हुआ करती थी,
उलझन का सामान मेरी।

अक्सर हैरान होता हूँ इस बदलाव पर
जब उनके रूप में खुद को पाता हूँ।
क्योंकि अब मेरा अपना बेटा
पूरे अट्ठारह का हो गया है।
भारती पंडित